राजस्थान के जनजातीय आंदोलन क्लास नोट्स | Rajasthan General Knowledge Notes in Hindi | History Notes

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राजस्थान के जनजातीय आंदोलन क्लास नोट्स | Rajasthan General Knowledge Notes in Hindi

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राजस्थान सामान्य ज्ञान : जनजातीय आंदोलन

  • राजस्थान की जनजातियों में भील, मीणा, सहरिया एवं गरासिया प्रमुख है।
  • ब्रिटिशकाल में देश के अन्य हिस्सों की तरह राजस्थान में भी जागीरदारों और साहूकारों ने शोषण शुरू कर दिया।
  • 19वीं सदी के अन्त में इन जातियों की स्थिति में सुधार के लिए कई महापुरुष आगे आए तथा जनजागृति का कार्य किया।

♦ मेर विद्रोह (1818-1824)

  • 1818 में अजमेर के अंग्रेज सुपरिन्टेन्डेन्ट एफ. विल्डर के साथ मेरों ने लूट-पाट नहीं करने का समझौता किया।
  • अंग्रेजों द्वारा मेरों के क्षेत्र में चौकियों व थानों की स्थापना की गई। अत: प्रक्रिया स्वरूप मेरों ने 1820 में आरम्भ से ही जगह-जगह विद्रोह शुरू कर दिया।
  • मेर विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजी सेना की 3 बटालियन, मेवाड़ एवं मारवाड़ की संयुक्त सेनाओं ने मेरों पर आक्रमण कर दिया, जिससे भारी जन-धन की हानि हुई।
  • अंग्रेज जनवरी, 1821 के अन्त तक मेर विद्रोह का दमन करने में सफल रहे। 

♦ मीणा आंदोलन (1924-1952)

  • वर्ष 1924 में क्रिमिनल ट्राईबल्स एक्ट (आपराधिक जाति अधिनियम) व जरायम पेशा कानून, 1930 कानून के विरोध में आंदोलन हुआ।
  • जरायम पेशा कानून के तहत 12 वर्ष से ऊपर के सभी मीणा स्त्री-पुरुषों को रोजाना थाने पर उपस्थिति देने के लिए पाबंद किया गया।
  • मीणा समाज ने इसका तीव्र विरोध किया तथा ‘मीणा जाति सुधार कमेटी‘ एवं 1933 में ‘मीणा क्षत्रिय महासभा‘ का गठन किया।
  • जयपुर क्षेत्र के जैन संत मगनसागर की अध्यक्षता में अप्रैल, 1944 में मीणाओं का एक वृहद् अधिवेशन नीम का थाना, सीकर में हुआ, जहाँ पं. बंशीधर शर्मा की अध्यक्षता में राज्य मीणा सुधार समिति का गठन किया गया।
  • इस समिति का सचिव लक्ष्मीकांत को बनाया गया।
  • इस समिति ने 1945 में जरायम पेशा व अन्य कानून वापस लेने की माँग करते हुए समिति के संयुक्त मंत्री लक्ष्मीनारायण झरवाल के नेतृत्व में आन्दोलन चलाया।
  • 3 जुलाई, 1946 को सरकार ने स्त्रियों व बच्चों को जरायम पेशा कानून अधिनियम, 1930 से राहत प्रधान की।
  • 28 अक्टूबर, 1946 को एक विशाल सम्मेलन बागावास में आयोजित कर चौकीदार मीणाओं ने स्वेच्छा से चौकीदारी के काम से इस्तीफा दिया तथा इस दिन को ‘मुक्ति दिवस‘ के रूप में मनाया।
  • 1952 में इस कानून को पूर्णत: समाप्त कर दिया गया।

♦ भील आंदोलन (1818-1860)

● मेवाड़ भील कोर

  • गवर्नर जनरल की सलाहकार परिषद् की सलाह पर गठन
  • स्थापना – 1841
  • मुख्यालय – खैरवाड़ा (उदयपुर)
  • प्रथम कमांडेंट– कैप्टन विलियम हंटर
  • कार्य – भीलों पर नियंत्रण स्थापित करना।

 भगत आन्दोलन

  • नेतृत्वकर्ता – गुरु गोविंद गिरी
  • गुरु गोविंद गिरी का जन्म डूँगरपुर जिले के बेड़सा गाँव में हुआ था। तथा ये जाति से बंजारा थे।
  • उपनाम – भीलों का मसीहा
  • भोमट अथवा मगरा – मेवाड़ राज्य के दक्षिण पश्चिम का क्षेत्र जहाँ भील व गरासिया जनजातियाँ निवास करती थी।
  • भगत आंदोलन के कारण
     1. बोलाई कर या रखवाली कर समाप्त।
     2. महुआ से बनी शराब प्रतिबंधित।
     3. रियासती सेनाओं का भंग होना।
    4. वन संपदा के अधिकार समाप्त करना।

सम्पसभा –

  • स्थापना – 1883, सिरोही
  • प्रथम वार्षिक अधिवेशन – वर्ष 1903
  • सम्प’ का शाब्दिक अर्थ – भाईचारा या बंधुता
  • उद्देश्य – भीलों व गरासियों में एकता स्थापित करना था।
  • सम्प सभा के 10 नियम थे।
  • 1910 में सम्प सभा के माध्यम से गोविंद गिरी जी ने 33 सूत्री माँगपत्र सरकार के सामने रखा जिसे गुरुजी का पत्र कहते हैं।

● भगत पंथ –

  •  स्थापना – वर्ष 1911, बेड़सा
  • गोविंद गिरी ने भील बाहुल्य गाँवों में ‘धूनियाँ’ स्थापित की।
  • धूनियों की सुरक्षा हेतु कोतवालों की नियुक्ति की।

● मानगढ़ हत्याकांड – 17 नवम्बर, 1913

  • स्थान  अम्बादरा गाँव, मानगढ़ पहाड़ी (बाँसवाड़ा)
  • ब्रिटिश सेना ने भीलों को घेरकर गोलियाँ चलाई जिसमें 1500 भील मारे गए।
  • गोविंद गिरी व पूंजा धीरजी को गिरफ्तार।
  • गोविन्द गिरी ने अपना शेष जीवन गुजरात के कम्बोई नामक स्थान पर व्यतीत किया।
  • उपनाम – भारत का दूसरा जलियाँवाला बाग हत्याकांड
  • मानगढ़ पहाड़ी पर हर वर्ष आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को मेला भरता है।

♦ एकी/भोमट/मातृकुंडिया आन्दोलन

  • नेतृत्वकर्ता – मोतीलाल तेजावत
  • मोतीलाल तेजावत
  • उपनाम – आदिवासियों के मसीहा
  • आंदोलन का प्रारंभ – वर्ष 1921 (वैशाख पूर्णिमा)
  • स्थान – मातृकुण्डिया, राशमी तहसील (चित्तौड़गढ़)
  • कारण – लाग-बागों व बेगार के विरुद्ध
  • उद्देश्य- भीलों व किसानों में पूर्ण एकता स्थापित करना था।
  • कोल्यारी, झाड़ोल व मादड़ी जैसे आदिवासी क्षेत्रों में भीलों को संगठित कर अवैध लाग बाग व बेगार न देने हेतु प्रोत्साहित किया।
  • मेवाड़ की पुकार – 21 सूत्री माँगपत्र के माध्यम से भीलों पर होने वाले अत्याचारों का वर्णन। 21 में से 18 माँगें मानी गई,‌ शेष 3 माँगें (बेगार, वन सम्पदा पर अधिकार व सूअर) नहीं मानी गई।

 नीमड़ा कांड (1921) –

  • सम्मेलन कर रहे भीलों पर मेजर सूटन के नेतृत्व में मेवाड़ भील कोर के सैनिकों ने अंधाधुंध फायरिंग की।
  • नीमड़ा कांड में 1200 भील मारे गए व हजारों घायल हुए तथा तेजावत फरार हो गए।

♦ सिरोही राज्य में ‘एकी आंदोलन’ –

  • नेतृत्व – मोतीलाल तेजावत
  • 1922, तेजावत का सिरोही राज्य में प्रवेश
  • पोल (ईडर), 1922 – 2000 अनुयायियों के साथ मौजूद तेजावत को घेर कर ’मेवाड़ भील कॉपर्स’ ने गोलियाँ चलाई जिससे 22 लोगों की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई।
  • तेजावत ने अपने आप को ‘गाँधी जी का शिष्य’ घोषित किया।
  • गाँधी जी की ओर से ‘मणिलाल कोठारी’ सिरोही पहुँचा।

 रोहिड़ा कांड/सिरोही के भीलों की दूसरी दु:खद घटना –

  • 5-6 मई, 1922 मेवाड़ भीलकोर व राज्यकीय सेना ने बालोलिया व भूला गाँवों को घेर कर गोलीबारी की व दोनों गाँवों में आग लगा दी। जिसमें 150 किसान घायल एवं 50 किसान शहीद हुए।
  • रोहिड़ा काण्ड के पश्चात् भीलों ने ‘हाकिम और हुक्म नहीं’ का नारा दिया।
  • जून, 1929 में गाँधीजी के कहने पर तेजावत ने खेड़ब्रह्मा, गुजरात में पुलिस के सामने समर्पण किया।
  • 23 अप्रैल, 1936 को तेजावत को बरी किया।

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अंतिम शब्द

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