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राजस्थान के प्रमुख संत एवं सम्प्रदाय भाग – 1
– राजस्थान का जनजीवन अनेक धार्मिक मान्यताओं और आस्थाओं में गूँथा हुआ है। राजस्थान की भौगोलिक परिस्थतियों, मध्यकालीन राजनीतिक संक्रमण, इस्लाम के प्रवेश एवं तुर्क आक्रमणों, उत्तर भारत के भक्ति आन्दोलन आदि ने राजस्थान के जनमानस को भी उद्वेलित किया।
– हिन्दू धर्म, राजस्थान प्रदेश का मुख्य धर्म है। हिन्दू धर्म के अंतर्गत ‘विष्णु पूजक’ अर्थात वैष्णव धर्म में आस्था रखने वाले लोगों की संख्या सर्वाधिक है। वैष्णवों के अतिरिक्त शैव एवं शाक्त मतावलम्बी भी प्रदेश में न्यूनाधिक संख्या में निवास करते हैं। वैष्णव, शैव एवं शाक्त तीनों ही मत अनेक पंथों एवं सम्प्रदायों में बँटे हुए हैं।
– वैष्णव एवं शैव उपासकों को उपासना पद्धति के आधार पर दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-
(1) सगुण संप्रदाय – इसमें ईश्वर को सर्वस्व मानकर ईश्वर के मूर्त रूप की पूजा – आराधना की जाती है।
(2) निर्गुण संप्रदाय – इस मत के समर्थक ईश्वर को निराकार एवं निर्गुण परमसत्ता मानकर उसकी भक्ति करते हैं।
सगुण सम्प्रदाय | निर्गुण सम्प्रदाय |
रामानुज सम्प्रदाय | विश्नोई सम्प्रदाय |
वल्लभ सम्प्रदाय | जसनाथी सम्प्रदाय |
निम्बार्क सम्प्रदाय | दादू सम्प्रदाय |
नाथ सम्प्रदाय | रामस्नेही सम्प्रदाय |
गौड़ीय सम्प्रदाय | परनामी सम्प्रदाय |
पाशुपत सम्प्रदाय | निरंजनी सम्प्रदाय |
निष्कलंक सम्प्रदाय | कबीरपंथी सम्प्रदाय |
चरणदासी सम्प्रदाय | लालदासी सम्प्रदाय |
मीरादासी सम्प्रदाय |
वैष्णव धर्म एवं उसके सम्प्रदाय
भगवान विष्णु व उनके दस अवतारों को प्रधान देव मानकर उसकी आराधना करने वाले वैष्णव कहलाए।
वैष्णव धर्म के विषय में प्रारम्भिक जानकारी उपनिषदों से मिलती है।
वैष्णव धर्म को ‘भागवत धर्म’ भी कहा जाता है।
प्रवर्तक – वासुदेव श्रीकृष्ण
विष्णु के चौदह अवतार हैं। मत्स्य पुराण में इसके दस अवतारों का वर्णन है।
राजस्थान में वैष्णव धर्म का सर्वप्रथम उल्लेख द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व के घोसुण्डी अभिलेख में मिलता है।
वैष्णव धर्म के सम्प्रदाय
1. रामानुज सम्प्रदाय
2. रामानन्दी सम्प्रदाय
3. निम्बार्क सम्प्रदाय
4. वल्लभ सम्प्रदाय
5. ब्रह्म या गौड़ीय सम्प्रदाय
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अंतिम शब्द
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