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राजस्थान की प्रमुख वेशभूषा एवं आभूषण ( 1 ) | Rajasthan ki veshbhusha avm aabhushan important classroom notes
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पुरुषों के वस्त्र
पगड़ियाँ
– पगड़ी पुरुषों द्वारा सिर पर बाँधी जाती है। जो मान-सम्मान और स्वाभिमान का प्रतीक होती है।
– राज्य में पगड़ियों का संग्रहालय – बागोर की हवेली (उदयपुर)
– इस संग्रहालय में विश्व की सबसे बड़ी पगड़ी सुरक्षित है।
– उपनाम – पाग, घुमालो, पेटा, लपेटो, बागा, साफा, पेचा, अमलो, फालियो, सेलो, शिरोप्राण।
– मेवाड़ की पगड़ी और मारवाड़ का साफा प्रसिद्ध हैं।
– मेवाड़ की उदयशाही पगड़ी तथा जोधपुरी साफा कशीदाकारी के लिए प्रसिद्ध हैं।
– जयपुर की झाड़शाही/राजाशाही पगड़ी प्रसिद्ध है।
– पाग – पाग, उस पगड़ी को कहते हैं जो लम्बाई में सर्वाधिक होती है।
– पेचा – जरीदार पगड़ी को पेचा कहा जाता है, पेचा में केवल एक ही रंग होता है यदि बहुरंग हो तो उसे मंदील कहा जाता है।
– पगड़ी के सजावट की वस्तुएँ तुर्र, सरपंच, बालाबन्दी, धुगधुगी, पछेवड़ी, लटकन, फतेपेच आदि का इस्तेमाल होता था।
मेवाड़ की प्रचलित पगड़ियाँ
1. अमरशाही पगड़ी – महाराणा अमरसिंह-I
2. अरसी शाही पगड़ी – महाराणा अखैसिंह
3. उदयशाही पगड़ी – महाराणा उदयसिंह
4. स्वरूपशाही पगड़ी – महाराणा स्वरूपसिंह
5. भीमशाही पगड़ी – महाराणा भीमसिंह
6. बरखारमा पगड़ी – मेवाड़ की सर्वाधिक प्रचलित पगड़ी।
मारवाड़ की प्रचलित पगड़ियाँ (साफा)
1. जसवन्तशाही साफा – महाराजा जसवन्तसिंह-I
2. सरदारशाही साफा – महाराजा सरदारसिंह
3. उम्मेदशाही साफा – महाराजा उम्मेदसिंह
4. गजशाही साफा – महाराजा गजसिंह
विशेष अवसर की पगड़ियाँ
लहरिया पगड़ी – तीज के त्योहार पर पहने जाने वाली पगड़ी।
मंदील पगड़ी – दशहरे के अवसर पर पहने जाने वाली पगड़ी।
मोठडे़ की पगड़ी – विवाह/उत्सव के अवसर पर पहने जाने वाली पगड़ी।
मोटी पट्टेदार पगड़ी – बनजारे लोग मोटी पट्टेदार पगड़ी पहनते हैं।
आंटे वाली पगड़ी – सुनार आंटे वाले पगड़ी पहनते हैं।
ऋतुओं के अनुसार पहने जाने वाली पगड़ियाँ
– बसन्त ऋतु – गुलाबी पगड़ी
– ग्रीष्म ऋतु – फूल गुलाबी व बहरीया पगड़ी
– वर्षा ऋतु – मलय गिरी पगड़ी
– शरद ऋतु – गुल-ए-अनार पगड़ी
– हेमन्त ऋतु – मोलिया पगड़ी
– शिशिर ऋतु – केसरिया पगड़ी
– होली के अवसर पर – फूल-पत्ती की छपाई वाली पगड़ी
– मेवाड़ के महाराणाओं की पगड़ी बाँधने वाले व्यक्ति को छाबदार कहा जाता है।
– अकबर के काल में मेवाड़ में ईरानी पद्धति की अटपटी पगड़ी का प्रचलन था।
– जोधपुर में चूंदड़ी का साफा सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है।
– जोधपुर/मारवाड़ में खिड़किया पाग सर्वाधिक प्रसिद्ध रही है लेकिन वर्तमान में इस पाग का प्रयोग गणगौर पर ईसरजी के लिए किया जाता है।
– मारवाड़ की प्रमुख पगड़ियाँ – जसवन्तशाही, चूंडावत शाही, शाहजहाँनी, मांडपशाही, मानशाही, राठौड़ी, विजय शाही आदि।
– रोबिला साफा – मारवाड़ का प्रसिद्ध है।
– जोधपुरी साफा – इसका प्रचलन जसवन्तसिंह-I के काल में हुआ।
– सर प्रतापसिंह ने जोधपुरी साफा को देश-विदेश में विशेष पहचान दिलाई।
– राठौड़ी पेंच – राजस्थान में राजपूतों द्वारा सर्वाधिक पसंद की जाने वाली पगड़ी।
– राजस्थानी लोकगीत “जला” में इस पगड़ी का उल्लेख मिलता है।
– राजशाही पगड़ी या झाड़शाही पगड़ी या जयपुरी पगड़ी – जयपुर में प्रचलित।
– यह पगड़ी लाल रंग के लहरिये से बनी होती है जो केवल राजाओं के द्वारा पहनी जाती थी।
पुरुषों द्वारा पहने जाने वाले वस्त्र
– जामा – यह वस्त्र गर्दन से लेकर घुटनों तक पहना जाता है।
– मुगलकाल में जामा गर्दन से लेकर पैरों के टखने तक पहना जाता था इसे ‘अकबरी जामा’ कहा जाता था।
– पछेवड़ा – पुरुषों के द्वारा सर्दी में ओढ़ा जाने वाला चद्दरनुमा वस्त्र।
– डौछी – यह जामा वस्त्र की तरह पहना जाता है, सर्वाधिक मेवाड़ में प्रचलित है।
– अंगोछा – पुरुषों के कन्धे पर रखा जाने वाला वस्त्र।
– पायजामा – कमर से लेकर पैरों के टखने तक पहने जाने वाला वस्त्र।
– आतमसुख – यह सर्दियों में पहना जाने वाला वस्त्र।
– घूघी – ऊनी वस्त्र जो सर्दी से बचाव हेतु उपयोग लिया जाता है।
– अंगरखा या अंगरखी या बुगतरी – यह शरीर के ऊपरी भाग पर पहने जाने वाला वस्त्र है।
– अचकन – यह अंगरखी का विकसित रूप है।
– चुगा या चौगा – यह अंगरखी के ऊपर पहना जाने वाला वस्त्र।
– कमरबन्द या पटका – यह चौगा को कमर से बाँधने वाला वस्त्र जिसमें कटार या तलवार रखी जाती थी।
– धोती – यह सफेद रंग का वस्त्र है जो पुरुष कमर पर पहनते है।
– बिरजस या ब्रिचेस – चूड़ीदार पायजामे के स्थान पर प्रयोग किया जाने वाला वस्त्र।
आदिवासी महिलाओं के वस्त्र
– नान्दणा – आदिवासी महिलाओं का सबसे प्राचीन वस्त्र। यह आसमानी रंग की साड़ी होती है।
– जामसाई साड़ी – विवाह के अवसर पर दुल्हन द्वारा पहने जाने वाला वस्त्र।
– लूगड़ा या अंगोछा साड़ी – विवाहित स्त्रियों का पहनावा जिसमें सफेद आधार पर लाल बूटे छपे हुए होते हैं।
– कटकी – अविवाहित बालिकाओं की ओढ़नी। इसमें अलंकरण को पावली एवं ओढ़नी को पावली भाँत की ओढ़नी कहते हैं।
– ताराभाँत की ओढ़नी – आदिवासी महिलाओं का सबसे प्रिय वस्त्र। इसमें आधार भूरी-लाल तथा किनारों का छोर काला षट्कोणीय आकृति जैसा होता है।
– ज्वार भाँत की ओढ़नी – सफेद छोटी-छोटी बिन्दी वाले आधार और लाल-काले रंग की बेल-बूटियाँ होती हैं।
– चूनड़ – भीलों की चूनड़ प्रसिद्ध है। यह एक प्रकार की ओढ़नी है।
– केरी भाँत की ओढ़नी – इसकी किनारी केरी तथा आधार में ज्वार भाँत जैसी बिन्दियाँ होती हैं। आदिवासी महिलाओं में प्रचलित।
– लहर भाँत की ओढ़नी – ज्वार भाँत जैसी बिन्दियों से लहरिया बना होता है।
– कछाबू – आदिवासी महिलाओं द्वारा कमर से घुटनों तक पहनने वाला वस्त्र।
– दामड़ी – यह मारवाड़ क्षेत्र में महिलाओं द्वारा पहने जाने वाली लाल रंग की साड़ी।
– पेसवाज – शरीर के ऊपरी भाग से लेकर नीचे तक ढकने वाला परिपूर्ण वस्त्र।
– तिलका – मुस्लिम महिलाओं द्वारा चूड़ीदार पायजामे पर पहना जाने वाला वस्त्र।
राजस्थान के आभूषण
– आभूषण का शाब्दिक अर्थ – गहना, अलंकार।
– राजस्थान में प्राचीन काल से ही मानव सौंदर्य प्रेमी रहा है। कालीबंगा और आहड़ सभ्यता के युग की स्त्रियाँ, मृण्मय तथा चमकीले पत्थरों की मणियों से बने आभूषण पहनती थी। वहीं शुंग काल में स्त्रियाँ मिट्टी के आभूषण प्रयोग में लेती थी। उस समय हाथीदाँत के बने गहनों का भी उपयोग किया जाता था।
– धीरे–धीरे समयानुसार आभूषणों में परिवर्तन आया एवं वर्तमान में सोना, चाँदी, ताँबा आदि धातुओं से निर्मित आभूषणों का चलन है। वर्तमान में मानव द्वारा शरीर को सुंदर एवं आकर्षक बनाने के लिए इन आभूषणों का प्रयोग किया जाता है।
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अंतिम शब्द
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