Rajasthan ki Janjati Class Notes in Hindi अगर आप राजस्थान से है या राजस्थान की प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे है तो आज हम आपके लिए Tribes of Rajasthan gk notes one liner in Hindi | राजस्थान की जनजातियां लेकर आये है जो विशेषकर रीट लेवल 1 परीक्षा 2022 एवं 1st and 2nd Grade Teacher Exam, Rajasthan S.I. की तैयारी कर रहे है उनके लिए यह बेहद खास है यह नोट्स उनके लिए रामबाण की तरह साबित होने वाली है इसमें आपको राजस्थान की जनजातियां से संबंधित महत्वपूर्ण टॉपिक विस्तार से पढने को मिलेंगे
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Tribes of Rajasthan gk notes one liner in Hindi | राजस्थान की जनजातियां
- राजस्थान में सर्वाधिक जनजाति उदयपुर एवं न्यूनतम बीकानेर में निवास करती है
- सर्वाधिक जनसंख्या – मीणा जनजाति
- सबसे प्राचीन जनजाति – भील
- राजस्थान की एकमात्र आदिम जनजाति – सहरिया
- भील जनजाति –
- राजस्थान की सर्वाधिक प्राचीन जनजाति मानी जाती है रामायण में महाभारत में भी इस जनजाति का उल्लेख आता है यह जनजाति उदयपुर, डूंगरपुर बांसवाड़ा में निवास करती है
- भील जनजाति मेवाड़ राज्य की परंपरागत रक्षक मानी जाती है
- महाराणा प्रताप के संदर्भ में भील सदैव उनके साथ रहे
भीलो की परम्पराएं –
- भील जनजाति में वधू मूल्य देखकर विवाह किया जाता है जिसे दापा कहते हैं
- भीलो की उपचार पद्धति ‘ डाम’ कहलाती है
- जिलों में सामुदायिक सहयोग की परंपरा हलवा/ हाडा/ हिड कहलाती है
- “फ़ायरे-फ़ायरे’ भीलो का रणघोष होता है
- मार्गदर्शक भील को बोलावा कहा जाता है
- भीलो द्वारा सर पर बांदा जाने वाला वस्त्र’ ‘थेपड़ा’ कहलाता है
- भीलो के घर को “कू” कहते हैं
- भीलो के 8-10 मकान मिलाकर फला कहलाता है
- पाल का मुखिया “ पालवी” कहलाता है
- भीलो के समस्त गाँव का मुखिया गमेती कहलाता है
- भीलो द्वारा पहाड़ी क्षेत्रों को चिमाता कहते हैं व मैदानी खेती को वालरा कहते हैं
- राजस्थान की सबसे बड़ी दूसरी जनजाति
- कर्नल जेम्स टॉड ने वनपुत्र कहा
- मुखिया – तदवी/वंसाओ
- सैनिक के घोड़े को मरने वाला – पाखरिया
- कुल देवता – टोटम
- तलाक कहलाता है – छेड़ा फाड़ना
- मीणा जनजाति –
- मीणा का शाब्दिक अर्थ – मछली
- सबसे बड़ी जनजाति
- मीणा जनजाति फैलाव जयपुर , दौसा , करौली , सवाईमाधोपुर छेत्र में देखा जा सकता है
- कर्नल टॉड के अनुसार “काली खोह पर्वतमाला” मीणो का मूल निवास स्थान है
- मीणा जनजाति मूल रूप से शक्ति का उपासक रही है
- जीण माता को ये अपनी आराध्य देवी मानते है
- कूल देवता – बुझ देवता
- मीणा जनजाति के दो वर्ग है – 1 – चौकीदार मीणा 2 . जमींदार मीणा
- मीणाओ में बहन के पति का सर्वाधिक सत्कार किया जाता है
- गरासिया जनजाति –
- गरासिया जनजाति का सर्वाधिक निवास – सिरोही
- पाली में कुछ भागो में पायी जाती है
- माउंट आबू का भाखर छेत्र गरासिया जनजाति का मूल स्थान माना जाता है
- नक्की झील गरासिया जनजाति के लिए अत्यधिक पवित्र है जहा से अपनों की अस्थिया विसर्जित करते है
- गरासिया जनजाति सफेद रंग के पशु पक्षियों को अत्यधिक पवित्र मानती है
- इसमें प्रेम विवाह का सर्वाधिक प्रचलन है
- गरासिया जनजाति के प्रमुख मेले – 1 – देलवाड़ा – चैत्र विचित्र मेला 2 – अम्बाजी का कोटेश्वर में (गुजरात)
- गरासिया का घर – घेर
- गांव की सबसे छोटी इकाई – फलिया
- मृतक व्यक्ति के स्मारक – हुर्रे
- मुखिया – सहलोत
- आदर्श पक्षी – मोर
- अस्थि विसर्जन – नक्की झील ( माउंट आबू )
- सहरिया जनजाति –
- राजस्थान के बारा क्षेत्र के शाहाबाद में किशनगंज तहसील में सर्वाधिक सहरिया देखे जाते हैं
- इनके सर्वाधिक पिछड़े पन के कारण भारत सरकार ने इन्हे “आदिम जाति” समूह में शामिल किया
- सहरिया जाति का गांव “सहरोल” कहलाता है
- सहरिया पंचायत का मुखिया “ कोतवाल” कहलाता है
- सहरिया समाज में पर्दा प्रथा। विधवा विवाह , नाता प्रथा प्रचलित है
- ब्रज छेत्र की भांति सहरिया छेत्र में भी लठमार होली खेली जाती है
- बारां जिले में भरने वाला ‘सीतावडी का मेला” सहरिया जनजाति का कुम्भ कहलाता है
- घास फुस से निर्मित सहरिया का घर – टापरा
- कूल देवी – कोडिया देवी
- डामोर जनजाति –
- डूंगरपुर जिले में सर्वाधिक जमाव
- डूंगरपुर जिले की “सीमलवाड़ा” पंचायत समिति में सर्वाधिक डामोर निवास करते है अतः यह छेत्र “दामोरिया” कहलाता
- डामोर पंचायत के मुखिया को – मुखी कहते है
- डामोर जनजाति में पुरुषो को भी महिलाओ की तरह गहने पहनने का शोक है
- डामोर जनजाति गुजरात जनजाति की प्रवासी जनजाति रही है
- गुजरात के पंचमहल जिले में भरने वाला “झेला बावजा का मेला” इसका प्रिय मेला है
- गांव की सबसे छोटी इकाई – फंला
- यह वनो पर आश्रित जनजाति नहीं है
- कथौड़ी जनजाति –
- यह मूल रूप से महाराष्ट्र की जनजाति है
- “कत्था” बनाने दक्ष है अतः इसे कथौली कहते है
- उदयपुर गोगिन्दा एवं झाड़ोल पंचायत समिति में सर्वाधिक कथौड़ी निवास करते है
- उदयपुर शहर के कत्था व्यापारियों ने इस जनजाति को व्यवसायिक आधार पर राजस्थान से लाकर बसाया यह राजस्थान की एकमात्र जनजाति है जिसका कोई व्यावसायिक आधार नहीं है
- इनकी भाषा में मराठी शब्द देखे जा सकते है
- मराठी अंदाज साड़ी – फड़का
- स्त्रिया शराब पीती है
- शव दफ़नाने का रिवाज है
- कंजर जनजाति –
- कंजर शब्द संस्क्रत के काननचार से निकला है जिसका शाब्दिक अर्थ है – जंगल में विचरण करने वाला
- यह अपनी अपराध प्रवृति के लिए प्रसिद्ध है
- यह हनुमानजी एवं चौथ माता को अपना आराध्य मानते है और कोई आपराधिक कार्य करने से पूर्व ईश्वर का आशीर्वाद लेते है जिन्हे पाती गवाना कहते है
- सवाईमाधोपुर जिले के “चौथ का बरवाड़ा” में भरने वाला चौथ माता का मंदिर इनका लोकप्रिय मेला है
- इनका मूल छेत्र हाड़ोती है
- इसके अतिरिक्त ये अजमेर एवं भीलवाड़ा में दिखाई देते है
- मुखिया – पटेल कहलाता है
- मृत व्यक्ति को मुख में शराब डालने का रिवाज है
- हाकम राजा का प्याला पीकर झूठ नहीं बोलते
- घरो में दरवाजे नहीं होते है
- सांसी जनजाति –
- सांसमल नामक व्यक्ति से मानी जाती है ये सभी अपराध प्रवृति के लिए प्रसिद्ध है
- इनका मूल छेत्र भरतपुर है
- बीजा व माला दो सांसी समुदाय है और जब ये दोनों कबीले संयोग से एक स्थान पर मिलते है वही इनमे शादी – संबंध तय हो जाते है
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